सहयोग

पूंछे जाने वाले प्रश्न के लिये आप नगद सहयोग प्रदान कर सकते है इसके लिये आप ईमेल moc.liamg|airuadahbortsa#moc.liamg|airuadahbortsa पर लिख कर पूंछ सकते है या मोबाइल नम्बर +919456673844,9414386494 से पूंछ सकते है.
** प्रश्न के उत्तर को प्राप्त करने के लिये नियत फ़ीस

  • किये जाने वाले प्रश्न की विस्तार से जानकारी प्राप्त करने के लिये एक ही प्रश्न का उत्तर दिया जाता है कई प्रश्न एक साथ करने पर उत्तर देने मे कठिनाई आती है.
  • उन प्रश्नो का जबाब नही दिया जाता है जो एक शब्द के होते है जैसे marriage, future, career आदि.प्रश्न को विस्तार से लिखना होता है.
  • एक प्रश्न जो शरीर के दुख से सम्बन्धित हो किसी भी जातक के लिये एक बार मे मुफ़्त मे दिया जाता है,एक ही प्रश्न को बार बार पूंछने पर उत्तर देना बन्द कर दिया जाता है.
  • नौ साल से कम उम्र की कन्या का उत्तर कभी भी मुफ़्त मे दिया जाता है.
  • आध्यात्मिक कारणो की जानकारी के लिये उत्तर भी मुफ़्त मे दिये जाते है.
  • कन्या पक्ष अपने कन्या विवाह के लिये कुंडली मिलान मुफ़्त मे प्राप्त कर सकते है.
  • बेरोजगार अपंग आकस्मिक दुर्घटना सम्बन्धी कारणो से ग्रस्त व्यक्ति प्रश्न का उत्तर मुफ़्त मे प्राप्त कर सकते है.
  • जो लोग प्रश्न की फ़ीस नही अदा कर सकते है उनके लिये जरूरी है कि उत्तर प्राप्त करने के बाद गायों को चारा डालना पक्षियों को दाना खिलाना असहाय लोगो को भोजन देना आदि जैसे काम जरूर करें,कारण ज्योतिष ग्रहों की समीक्षा है और समीक्षा तब तक फ़लीभूत नही होती है जब तक ज्योतिष के प्रति मानसिक भुगतान नही कर दिया जाये.इन कामो को करने से प्रश्न पूंछने वाले के मन की श्रद्धा और उत्तर बताने के समय की श्रद्धा उत्तम फ़ल प्रदान करती है.
  • जो लोग अधिक समर्थ है वे लोग कन्या-दान गोसेवा गरीब और असहाय लोगो के लिये पुनर्भरण का काम कर सकते है.
  • शराब कबाब तामसिक भोजन के प्रति रुचि रखने वाले महानुभाव कृपया ज्योतिषीय कारणो से दूर रहे तो ठीक है,अन्यथा उनके प्रश्नो के उत्तर मिलने और उपाय आदि करने से बजाय लाभ के हानि होना जरूरी है.
  • जहाँ तक हो सके सूर्योदय के बाद ही अपने कुलदेवता अपने इष्टदेव के स्मरण के साथ ही प्रश्न को लिखें,क्योंकि ज्योतिष की सीमा का कारक सूर्य है जिसकी रश्मिया जीवन का रास्ता देने मे समर्थ होती है.
  • फ़ीस एक प्रश्न के लिये रुपया 501/- है.जिसमे उपाय सहित फ़लादेश किया जाता है.
  • जन्म कुंडली कन्या जातक के लिये मुफ़्त है और पुरुष जातक के लिये रुपया 1100/- है.
  • विवाह मिलान कन्या पक्ष के लिये मुफ़्त है वर पक्ष के लिये रुपया 1100/- है.
  • किराये से रहने वाले घूम घूम कर व्यवसाय करने वाले व्यक्ति एक प्रश्न किसी भी समस्या का महिने मे एक बार पूंछ सकते है.
  • लाटरी सट्टा जुआ चुनावी हारजीत परीक्षा मे पास फ़ेल आने वाली संतान के प्रति प्रेम सम्बन्ध अनैतिक सम्बन्ध आदि के बारे मे प्रश्न नही करें.
  • रत्न और भाग्यवर्धक वस्तुओं के लिये प्रश्न के उत्तर मे ही जानकारी दे दी जाती है,नही मिलने पर,या असली नकली के प्रति संदेह होने पर उन्हे मुझसे भी मंगाया जा सकता है.
  • फ़ीस के लिये बैंक एकाउंट का विवरण इस प्रकार से है :-

Account Numbar

  • SB A/C 10982150004230 Pavitra Bhadauria "Oriental Bank of Commerce" Church Road Jaipur Rajsthan India

IFSC Code (ORBC0101098)
SB A/C 5605108001161 ratna singh''canara Bank of gadi pratap pura jaitpur agra
IFSC Code (CNRB0005605)

  • किये जाने वाले कार्य का रूप तीन प्रकार से देखा जाता है :-

मन से किया जाने वाला काम

मन से किया जाने वाला कार्य मनसा कार्य कहलाता है,इस प्रकार के काम करने के लिये पहले शरीर की जरूरत पूरी करनी पडती है,जैसे भूख के समय मे भोजन गर्मी सर्दी बरसात से बचाव के लिये साधन आदि बनाना शरीर से प्राप्त होने वाले सुखो मे कमी या बढोत्तरी करना आदि,इसके बाद मन को अन्य प्रकार के कार्य मे लगाने की सोची जाती है और यह सोच या तो बहुत अच्छी हो जाती है अथवा किसी प्रकार का दोष देने के कारण जो पहले से कार्य किये जा रहे होते है वह भी खराब हो जाते है और वह जब खराब होने लगते है तो मन तृप्त नही होता है मन के तृप्त नही होने के कारण जो दुख मिलता है वह मानसिक दुख कहलाता है.मानसिक दुख के शुरु होते ही शरीर मे कई प्रकार की व्यथाये आजाती है और शरीर मे कमजोरी के आने से शरीर से किये जाने वाले काम और वाणी आदि के काम बाधित हो जाते है.

वाणी से किये जाने वाले काम

मन मे सोचने के बाद कार्य को वाणी पर लाया जाता है,जब मन सही काम कर रहा होता है तो वाणी भी काम करने लगती है और शरीर से मिलने वाली ऊर्जा वाणी को सही और भरोसे वाला बनाती है। अगर मन दुखी होता है तो वाणी मे नकारात्मक प्रभाव आना शुरु हो जाता है,उस नकारात्मक भाव के कारण जो भी काम बनता है वह भी बिगड जाता है। और मन सही होता है तो बिगडता हुआ काम भी बनने लगता है।

शरीर से किया जाने वाला काम

जब मन और वाणी स्थिर हो जाते है तो शरीर से कार्य किया जाता है मन और वाणी से किये जाने वाले काम मे दिमाग के साथ बुद्धि की जरूरत पडती है लेकिन शरीर से किये जाने वाले कम मे दिमाग बुद्धि के साथ साथ मन का भी सही होना माना जाता है,जैसे मन दुखी है और शरीर से काम किया जा रहा है तो वह या तो शरीर को दिक्कत देगा या काम को खराब करेगा,यही बात अक्सर देखी होगी कि मन कही जा रहा है और शरीर कुछ काम कर रहा है तो वह या तो शरीर को या किये जाने वाले काम को आहत करेगा। क्रिया के लिये मन का सही होना जरूरी है मन सही नही है तो क्रिया भी नही हो पाती है और होती भी है तो वह पूरी नही हो पाती है.

किये जाने वाले कार्य की सफ़लता के नियम

कार्य करना और सफ़लता लेना दोनो बाते अलग अलग है,कार्य को पूरा करने के बाद जो सफ़लता मिलती है वह सफ़लता अगर किसी प्रकार के दोष के साथ नही है तो वह सफ़लता सही मानी जाती है.अगर कार्य के अन्दर कोई दोष है तो वह कार्य सफ़ल तो मान लिया जाता है लेकिन दोष होने के बाद उस कार्य सामने का फ़ल तो सामने होता है उसका जो उत्तम रूप है वह दोष मे चला जाता है केवल कारक की द्रिष्टि ही दिखाई देती है लेकिन फ़ल का मजा नही मिल पाता है। जब किसी बात की धारणा को दिमाग मे रखकर कार्य किया जाता है उस कार्य के पीछे जो भी कारक होते है उन्हे भी सन्तुष्ट कर दिया जाता है तो कार्य का फ़ल उत्तम रूप से मिल जाता है। इसके उदाहरण मे अगर आपको रोजाना मुफ़्त का खाना मिलता रहे तो आप खाने का महत्व भूल जायेंगे,शरीर मे भी कई प्रकार के दोष पैदा हो जायेंगे,शरीर मे कितने ही रोग लग जायेंगे और उन रोगो से छुटकारा प्राप्त करने के लिये जो कष्ट मिलेंगे वह मुफ़्त के भोजन से कही अधिक होंगे। नाक से अगर खुशबू बदबू लगातार मिलती रहेगी तो खुश्बू बदवू का पता ही नही चलेगा और आंखो से अगर लगातार सब कुछ अच्छा ही दिखाई देता रहेगा तो बुरे को समझने का अवसर ही नही प्राप्त होगा,दिमाग को सोचने की जरूरत नही होगी तो कुछ समय बाद दिमाग भी अपना काम करना बन्द कर देगा.इसलिये किसी भी कार्य को करने के लिये उसकी कीमत चुकानी जरूरी होती है.बिना काम किये भोजन करने से शरीर बरबाद हो जायेगा,बिना दिमाग लगाये काम किया जायेगा तो कुछ दिन बाद दिमाग काम करना बन्द कर देगा,अगर बिना कीमत चुकाये किसी की मेहनत का फ़ल लिया गया तो जो काम बनेगा उसका उत्तम फ़ल जिसकी मेहनत की कीमत नही चुकाई गयी है उसे मिल जायेगा।

बिना कीमत चुकाये ली जाने वाली सलाह काम नही आती है

माता को भी उसकी की गयी मेहनत का फ़ल चुकाना जरूरी होता है लेकिन माता ने जो जाने अंजाने मे शरीर को सम्भालने के लिये ईश्वरीय मेहनत की है उसका फ़ल नही चुकाया जा सकता है इसलिये कहा गया है कि पिता का ऋण तो पुत्र को पैदा करने के बाद चुकाया जा सकता है लेकिन माता का ऋण व्यक्ति कभी भी नही चुका पाता है,गुरु का ऋण गुरु की दक्षिणा से स्त्री का ऋण उसकी परवरिस से पुत्र का ऋण उसके पालन पोषण से रिस्तेदारो का ऋण उनके किये गये व्यवहार से अधिक के रूप मे चुकाया जा सकता है। धरती का ऋण उसे सजाने संवारने और उसकी रक्षा करने से आसमान का ऋण उसे ईश्वर के रूप मे समझने से पानी का ऋण उसे व्यर्थ मे नही फ़ैलाने से और प्यासे को पानी पिलाने से चुकाया जा सकता है.

मन बुद्धि शरीर के सही होने पर भी ली जाने वाली मुफ़्त की सलाह भीख के बराबर मानी जाती है.

ईश्वर ने हमे देखने के लिये आंखे सुनने के लिये कान काम करने के लिये हाथ पैर और सोचने के लिये बुद्धि को प्रदान किया है,इसके अलावा कहने के लिये वाणी महसूस करने के लिये मन और समझने के लिये ज्ञान भी प्रदान किया है इन सब के होते हुये भी हम अगर किसी भी व्यक्ति से मुफ़्त की सलाह लेते है तो वह भीख कहलाती है,एक ऐसी भीख जो अरबो खरबो कमाने के बाद और खर्च करने के बाद नही चुकाई जा सकती है। रास्ते के बारे मे पता नही है और किसी रास्ता चलते व्यक्ति से रास्ते के बारे मे पूंछा जाता है तो वह तुम्हारी भावना के अनुसार ही रास्ता को बतायेगा और जिस देश काल परिस्थिति की रास्ता उसी के अनुसार बतायेगा,किसी ऐसे स्थान पर जाकर रास्ते को पूंछा जा रहा है जहां चोर उचक्के और राहजनी करने वाले बसते है तो वह वही रास्ता बतायेंगे जहां से वे अपने काम को कर सके,और बताये गये रास्ते के फ़ल मे केवल मिलेगा लुटना बरबाद होना और आगे के रास्ते पर नही जाने का कारण। अगर वही देश काल परिस्थिति किसी प्रकार से उत्तम और सज्जन लोगो से आच्छादित है तो किसी भी कष्ट मे वह लोग रास्ता भी बतायेंगे और हो सकता गंतव्य तक भी पहुंचा देंगे।

एक बार तो सही रास्ता मुफ़्त मे भी बताया जा सकता है अगर वह शरीर दुख से सम्बन्धित है.

अगर कोई बीमार है उसे सोचने समझने की शक्ति नही है वह भूखा है उसे परिवार से बिलग होना पडा है वह मौत से जूझ रहा है तो रास्ता बताना यानी उसे दुख से दूर करने का कारण देना एक प्रकार से इंसानी धर्म के अन्दर आजाता है,लेकिन व्यक्ति को रास्ता बताने के बाद उससे तर्क किया जाने लगे कि वह रास्ता उसने कैसे बताया तो यह बात गलत हो जाती है अगर वह अपने ज्ञान को बताने का श्रम करने लगेगा तो उसने जो आजीवन अपनी मेहनत से सीखा है वह कुछ अंश तो बता सकता है लेकिन किसी भी प्रकार से वह पूरे ज्ञान को नही दे सकता है,कारण ज्ञान को बताने के लिये कारण समय और कारण को वास्तविक रूप से पूर्ति के लिये साधन की जरूरत पडेगी वह जरूरी नही है कि हमेशा के लिये सामने ही हो।

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