चन्द्रमा के प्रकाश और वायु से धरती पर रोगो को पैदा करने वाले कारक और निवारण के कारक पैदा होते है। जब चन्द्रमा और वायु के कारक गुरु का किसी खराब ग्रह से योगात्मक प्रभाव मिलता है तो चराचर जगत के साथ साथ वनस्पतियों मे भी उनके खराब गुण ही विद्यमान हो जाते है। इसके लिये कहा भी गया है कि ऋतु के अनुसार भोजन लेने से और जो भोजन ऋतु के हिसाब से नही लिया जा सकता है के परित्याग से रोगो का पैदा होना नही मिलता है लेकिन जब जब राहु गुरु चन्द्रमा के साथ साथ अपना प्रभाव देगा वह भाव के अनुसार रोग को पैदा करने के लिये माना जायेगा। मन का कारक चन्द्रमा है और मन के रोगी होने पर शरीर रोगी हो जाता है और मन के प्रसन्न रहने पर शरीर रोग से दूर रहता है। उसी प्रकार से गुरु वायु का और प्राण वायु को संचालित करने का काम करता है जैसे ही गुरु का मिलना राहु या इसी प्रकार के ग्रह शनि केतु मंगल आदि ग्रहों के रोगी भाव के ग्रह के साथ युति लेने से रोग की शुरुआत हो जाती है। चन्द्रमा के लिये शीतकाल का समय बहुत ही अच्छा माना जाता है और इसी लिये देखा होगा कि शरद ऋतु की पूर्णिमा का चन्द्रमा रोगो से लडने की शक्ति को रखता है और लोग इस शरदीय पूर्णिमा को नदियों मे सरोवरो मे स्नान भी करते है और खीर आदि बनाकर रात को चन्द्रमा के सामने रखते है सुबह को उसका सेवन करते है जिससे चन्द्रमा के द्वारा दिये गये रोग निदान की शक्ति को ग्रहण किया जाता है। एक बात और भी देखी होगी कि पूर्णिमा के दिन मन भी बहुत प्रसन्न रहता है और अमावस्या के दिन मन की गति भी बहुत कमजोर मानी जाती है,जो काम अमावस्या को शुरु करने पर नही हो पाता है वह पूर्णिमा के दिन शुरु करने से पूरा हो जाता है। राजस्थान मे देखा भी गया है कि अमावस्या को मेहनत का काम करने वाले कारीगर इमारतो का काम करने वाले ठेकेदार काम को बन्द ही रखते है और काम को इसलिये नही करते है कि वे मानते है कि यह दिन उनके पूर्वजो का है और पूर्वजो के लिये वे काम नही करते है इसके पीछे जो वैज्ञानिक कारण सामने आता है वह केवल यही है कि मेहनत के काम को करने के बाद अगर अमावस्या को किया जाता है तो वह काम अगर खराब हो जाता है तो दुबारा से करना पडेगा और किये गये काम की मेहनत के साथ साथ उसका फ़ल भी खराब हो जायेगा। इसी प्रकार से समुद्र के अन्दर होने वाले बदलाव को भी इन्ही तिथियों मे देखा जा सकता है। रोगो की वृद्धि और कमी भी इन्ही तिथियों मे देखी जा सकती है। चन्द्रमा का रोगो से बहुत सम्बन्ध होता है इस बात को एक प्रकार से और भी देखा जा सकता है कि अगर रात को बच्चा जन्म लेता है तो बच्चे की आंखे नीली या कालिमा लिये होती है जबकि दिन को जन्म लेने वाले बच्चे की आंखो की पुतली का रंग बिलकुल सफ़ेद होता है यही बात अगर आप कर्क के चन्द्रमा और वृश्चिक के चन्द्रमा से देखेंगे तो कर्क के चन्द्रमा मे जन्म लेने वाले जातक की दांतो की पहिचान बहुत ही सुन्दर व चमकीली होती है जबकि चन्द्रमा के वृश्चिक राशि मे होने से दांतो की पहिचान गन्दी और पायरिया आदि से ग्रस्त तथा टेढी मेढी होती है,उसी प्रकार से मीन के चन्द्रमा मे जातक के दांत लम्बे होते है वृष के चन्द्रमा के दांत चौडे और सामने के चौकोर होते है।
"ज्योतिष के अनुसार यह भी कहा जाता है कि दवाई रत्न ग्रह नक्षत्र तारा आदि जब भाग्य सही होता है तो वह सभी सफ़ल हो जाते है और जब दुर्भाग्य का समय होता है तो वे सभी बेकार हो जाते है" इसलिये रोगो के लिये और इलाज के लिये सबसे पहले भाग्य का देखना जरूरी होता है और भाग्य सही नही है तो किसी भी प्रकार से रोग भी ठीक नही होता है और रोगी को कष्ट भी मिलता है।"
- Mesh Lagna मेष लगन के रोग
- Vrush Lagana वृष लगन के रोग
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- kanya Lagana कन्या लगन के रोग
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- Meen Lagana मीन लगन के रोग
रोगों के योग
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- Tapedik Rog Yoga तपेदिक (टीबी) रोग का योग
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- Netra Rog Yoga आंखो के रोग होने का योग
- Goonga Rog Yoga गूंगा होने का योग
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- Banjh Rog Yoga सन्तानहीनता का योग
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